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हिमाचल को वाटर सेस देने से हरियाणा का इन्कार: विस में प्रस्ताव पारित, HP के फैसले से 336 करोड़ रुपये का बोझ

अमर उजाला ब्यूरो, चंडीगढ़ Published by: भूपेंद्र सिंह Updated Thu, 23 Mar 2023 03:41 AM IST
सार

हिमाचल प्रदेश सरकार के फैसले से हरियाणा पर 336 करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा। महंगी बिजली खरीदने से हरियाणा ने इन्कार कर दिया है। इसपर केंद्र से दखल देने की मांग की है। मुख्यमंत्री ने फैसले को अंतरराज्यीय जल विवाद अधिनियम-1956 के खिलाफ बताया है। 

Haryana refuses to give water cess to Himachal
हरियाणा विधानसभा। - फोटो : @cmohry

विस्तार

हिमाचल प्रदेश सरकार के विधेयक लाकर जलविद्युत परियोजनाओं पर जल उपकर (वाटर सेस) लगाने के फैसले को हरियाणा सरकार ने नकार दिया है। हिमाचल सरकार इस कर के सहारे 1200 करोड़ रुपये का राजस्व इकट्ठा करना चाह रहा है। इसमें से 336 करोड़ रुपये हरियाणा सरकार को वहन करने होंगे। हरियाणा सरकार ने बुधवार को विधानसभा में सेस लगाने के खिलाफ प्रस्ताव पारित कर दिया।



वर्तमान में हरियाणा को कुल 1325 मेगावॉट बिजली हिमाचल प्रदेश के हाइड्रो प्लांट से मिलती है। इसमें से 846 मेगावॉट बिजली बीबीएमबी (भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड) के माध्यम से, 64 मेगावॉट नाथपा झाकड़ी और एनएचपीसी के माध्यम से 415 मेगावॉट बिजली मिलती है।


उपकर लगने के बाद यह बिजली हरियाणा को महंगी पड़ेगी। वाटर सेस को अवैध और गैरकानूनी करार देते हुए मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने कहा कि हरियाणा वाटर सेस देने के लिए बाध्य नहीं है। इसलिए हिमाचल प्रदेश सरकार तत्काल इसे वापस ले।

मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने इस संबंध में सदन में प्रस्ताव रखा, जिसे विपक्ष ने भी समर्थन दिया और प्रस्ताव सदन में सर्वसम्मति से पारित हुआ। सदन ने केंद्र सरकार से भी आग्रह किया है कि वह हिमाचल प्रदेश सरकार को यह अध्यादेश वापस लेने के आदेश दे। हरियाणा का तर्क है कि हिमाचल सरकार का यह फैसला अंतरराज्यीय जल विवाद अधिनियम, 1956 के खिलाफ है।

राज्य के विशेष अधिकारों का उल्लंघन: सीएम
मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने सदन में कहा कि इस वाटर सेस से भागीदार राज्यों पर प्रति वर्ष 1200 करोड़ रुपये का अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ेगा। इसमें से लगभग 336 करोड़ रुपये का बोझ हरियाणा राज्य पर पड़ेगा। यह सेस न केवल प्राकृतिक संसाधनों पर राज्य के विशेष अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि बिजली उत्पादन के लिए अतिरिक्त वित्तीय बोझ भी पड़ेगा। इससे बिजली उत्पादन की लागत भी अधिक होगी।

प्रति यूनिट एक रुपये से अधिक करना होगा भुगतान
हरियाणा को बीबीएमबी से वर्तमान में 59 पैसे प्रति यूनिट की दर से बिजली मिल रही है। नाथपा झाकड़ी से मिलने वाली बिजली की दर 2.36 रुपये प्रति यूनिट है। इसी तरह एनएचपीसी से मिलने वाली बिजली 2 से 2.5 रुपये प्रति यूनिट तक है। यदि सेस लगता है तो प्रत्येक परियोजना पर एक रुपये कुछ पैसे प्रति यूनिट अधिक देना पड़ेगा। इसका कुल बोझ 336 करोड़ रुपये तक जाने का अनुमान है।

कोई राज्य अकेले नहीं ले सकता निर्णय
चूंकि जल विद्युत परियोजना अकेले एक राज्य से संबंधित फैसला नहीं है। 1960 के सिंधु जल समझौते के कारण केंद्र सरकार के पास इस मामले में हस्तक्षेप के अधिकार है। लिहाजा कोई राज्य अकेले इस संदर्भ में फैसला नहीं कर सकता। हरियाणा सरकार ने इस मामले में केंद्र सरकार से हस्तक्षेप की मांग की है।

पंजाब में भी प्रस्ताव का विरोध, विधानसभा में प्रस्ताव पारित
पंजाब सरकार ने भी हिमाचल प्रदेश सरकार के वाटर सेस लगाने के प्रस्ताव का विरोध किया है। बुधवार को विधानसभा ने मुख्यमंत्री भगवंत मान के नेतृत्व में हिमाचल प्रदेश सरकार के फैसले की निंदा की गई। सदन में पंजाब के जल संसाधन मंत्री गुरमीत सिंह मीत हेयर की ओर से रखे गए प्रस्ताव का समर्थन करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि यह पंजाब के हितों से बड़ा धोखा है।

इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उन्होंने ने कहा कि सुक्खू सरकार का यह कदम गैर-कानूनी और तर्कहीन है। नदियों के पानी पर पंजाब का कानूनी हक है और कोई भी राज्य का यह हक नहीं छीन सकता। अपनी जमीन के रास्ते बह रहे पानी पर पंजाब एक पैसा भी किसी को नहीं देगा। पंजाब विधानसभा में हिमाचल प्रदेश सरकार के फैसले के विरोध में प्रस्ताव पास किया गया।
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