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Grand coincidence of Hasta Nakshatra and Sarvartha Siddhi Yoga being made on Nirjala Ekadashi
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Chandigarh News: निर्जला एकादशी पर बन रहा हस्त नक्षत्र एवं सर्वार्थ सिद्धि योग का महासंयोग
चंडीगढ़। इस बार निर्जला एकादशी पर हस्त नक्षत्र एवं सर्वार्थ सिद्धि योग का महासंयोग बन रहा है। यह कहना है सेक्टर-28 के खेड़ा शिव मंदिर के प्रमुख पुजारी आचार्य ईश्वर चंद्र शास्त्री का। उन्होंने कहा कि निर्जला एकादशी व्रत बुधवार 31 मई को है। 30 मई को दोपहर 1:09 बजे एकादशी तिथि प्रारंभ होगी और 31 मई को दोपहर 1:49 बजे समाप्त होगी। इस व्रत का पारण 1 जून को प्रातः सूर्योदय के बाद होगा।
उन्होंने कहा कि एकादशी का व्रत रखने से धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की सिद्धि प्राप्त होती है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है। इस व्रत से परिवार में सुख एवं समृद्धि बढ़ती है। इस दिन जलपूरित घटदान, पंखा, फल, दक्षिणा वस्त्र इत्यादि दान करने का विधान है। एकादशी के दिन गाय की पूजा करना, गौ दान करना, गाय की सेवा करना, गौ माता के दर्शन करना सिद्धि प्रदान करने वाला होता है।
इस वर्ष अधिक मास होने के कारण 26 एकादशी
श्री देवालय पूजक परिषद चंडीगढ़ के अध्यक्ष और सेक्टर-18 के श्री राधा कृष्ण मंदिर के पुजारी डॉ. लाल बहादुर दुबे ने बताया कि सनातन धर्म में व्रत का बहुत महत्व बताया गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादशी व्रत सर्वश्रेष्ठ व्रत है। वैसे तो 1 वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं परंतु पुरुषोत्तम मास को लेकर इनकी संख्या कुल 26 हो जाती है। अर्थात् 26 एकादशियां होती हैं। सभी का अपना अपना महत्व है परंतु निर्जला एकादशी का व्रत सब प्रकार से श्रेष्ठ माना गया है। उन्होंने कहा कि जो लोग एकादशी का व्रत करते हैं भगवान उन्हें सुखी एवं संपन्न होने का वरदान देते हैं। निर्जला का अर्थ है बिना जल के अर्थात् निर्जला एकादशी के व्रत में जलकर ग्रहण करना भी निषेध है। इस एकादशी को भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
देवनदी गंगा का अवतरण दिवस गंगा दशहरा 30 मई को
ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को गंगा दशहरा का पर्व मनाया जाता है। पुराणों के अनुसार इस शुभ तिथि को हस्त नक्षत्र में गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था। इस वर्ष गंगा दशहरा 30 मई को मनाया जाएगा। डॉ. लाल बहादुर दुबे ने बताया कि गंगा दशहरा को गंगा स्नान एवं गंगा पूजन से दस प्रकार के पापों का नाश होता है। उन्होंने कहा कि इस दिन सुबह उठकर गंगा या अन्य किसी पवित्र नदी या सरोवर में स्नान करें। स्नानोपरांत अभय मुद्रा युक्त मकर वाहिनी मां गंगा का ध्यान कर करना चाहिए। पूजा में दस प्रकार के फूल, दशांग धूप, दस दीपक, दस प्रकार के नैवेद्य, दस तांबूल और दस फल होने चाहिए। अंत में गंगा अवतरण की कथा सुनकर सर्व पाप हारिणी गंगा से दस पापों की निवृत्ति के लिए प्रार्थना करें।
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