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Chandigarh PGI Survey: बच्चों को मौत के मुंह में धकेल रही अपनों की अनदेखी, पीजीआई के सर्वे में बड़ा खुलासा

वीणा तिवारी, अमर उजाला, चंडीगढ़ Published by: निवेदिता वर्मा Updated Mon, 29 May 2023 02:17 PM IST
सार

अध्ययन की सह मार्ग दर्शक एनेस्थीसिया विभाग की ही डॉ. काजल ने बताया कि बच्चों की देखभाल को लेकर विदेशों में सख्त नियम हैं। वहां मां नवजात बच्चे के गोद में लेकर बाहर नहीं जा सकती। इतना ही नहीं एक दिन के बच्चे को भी सीट बैल्ट पहनाने के बाद ही कार में सफर के लिए ले जा सकते हैं। 

Chandigarh PGI Survey Reveals small mistake on parents part put their child life in danger
सांकेतिक तस्वीर - फोटो : iStock

विस्तार
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क्या आपने कभी सोचा है कि माता पिता अपने बच्चे की मौत का कारण हो सकते हैं। जी हां! ऐसा हो रहा है। पीजीआई ट्रामा सेंटर में दुर्घटना का शिकार होकर आने वालों में ऐसे बच्चों की संख्या ज्यादा है जो अपनों की अनदेखी के कारण मौत के मुंह में पहुंच रहे हैं।


चौंकाने वाली बात यह है कि उन बच्चों के माता पिता को इसका अनुमान ही नहीं था कि उनकी एक छोटी सी चूक उनके बच्चे की जिंदगी खतरे में डाल सकती है। ट्रामा सेंटर में पिछले एक साल के दौरान दुर्घटना का शिकार होकर आए ऐसे बच्चों पर किए गए अध्ययन से यह बात साबित हो रही है।

 

अध्ययन की मुख्य मार्गदर्शक एनेस्थिसिया विभाग की डॉ. निधि भाटिया ने बताया कि अध्ययन में दुर्घटना के कारणों का विश्लेषण किया गया है। एक साल के दौरान चार साल से कम उम्र के 50 ट्रामा वाले बच्चों को शामिल किया गया। उनके इस स्थिति में पहुंचने के कारणों के साथ ही अन्य महत्वपूर्ण बिंदुओं पर अध्ययन किया गया। चौंकाने वाली बात यह है कि माता पिता की जरा सी चूक या अनदेखी के कारण 50 में से 17 बच्चों ने जिंदगी गंवा दी थी। वहीं, उनमें से 50 प्रतिशत को आईसीयू में रहना पड़ा था। इलाज के दौरान सर्जरी से गुजरने के बावजूद कई की जिंदगी नहीं बच सकी। इस अध्ययन से एक बात सामने आई कि अगर माता-पिता उन अनदेखियों को कम कर दें जो वे सामान्य रूप से प्रतिदिन कई बार करते हैं तो बच्चों को ट्रामा के खतरे से सुरक्षित किया जा सकता है।


कोई छत से गिरा तो कोई सीढ़ियों से
डॉ. काजल ने बताया कि यहां लोग बच्चों को बाइक पेट्रोल की टंकी पर बैठाने में भी नहीं घबराते। स्कूटर पर पीछे बैठाकर तेज रफ्तार में सफर करते हैं। माताएं दोपहर के समय टीवी सीरियल देखते समय या खाना बनाते समय बच्चों को कमरे में या आंगन में छोड़ देती हैं। ऐसे घरों में ज्यादातर छोटे बच्चे सीढियों, बालकनी, छत से गिरते हैं। बिस्तर पर भी अकेले छोड़ दिया जाता है जिससे वे लुढ़ककर नीचे गिरते हैं। इस गिरने में बच्चों के सिर पर सबसे ज्यादा चोटे आती हैं। जो इलाज के बावजूद उनके मस्तिष्क पर दूरगामी प्रभाव छोड़ती हैं। इसके कारण ऐसे बच्चों का परफारमेंस लगातार खराब होता जाता है।

विदेशों में कड़ा नियम
अध्ययन की सह मार्ग दर्शक एनेस्थीसिया विभाग की ही डॉ. काजल ने बताया कि बच्चों की देखभाल को लेकर विदेशों में सख्त नियम हैं। वहां मां नवजात बच्चे के गोद में लेकर बाहर नहीं जा सकती। इतना ही नहीं एक दिन के बच्चे को भी सीट बैल्ट पहनाने के बाद ही कार में सफर के लिए ले जा सकते हैं। लापरवाही या अनदेखी सामने आने पर अभिभावक पर कानूनी कार्रवाई हो सकती है। बच्चे को अकेले छोड़ने की इजाजत नहीं है। लेकिन भारत में ऐसा कोई नियम-कानून नहीं है। अनजाने में ही सही लेकिन माता-पिता द्वारा की गई जरा सी अनदेखी बच्चे की जान जोखिम में डाल रही है।

एक साल में इतने आए ट्रामा में
  • सीवियर हेड इंजरी के 50 बच्चे
  • सभी की उम्र चार साल से कम
  • 24 बच्चे ऊंचाई से गिरने के कारण पहुंचे थे ट्रामा
  • 22 बच्चे रोड ट्रैफिक का हुए थे शिकार
  • चार बच्चे अन्य प्रकार के दुर्घटना के शिकार होकर ट्रामा पहुंचे थे
  • इनमें से 50 प्रतिशत को आईसीयू में करना पड़ा था भर्ती
  • 14 बच्चों की गई सर्जरी
  • 17 बच्चों की पीजीआई से घर जाने के तीन महीने के अंदर हो गई मौत
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