बर्मिंघम कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 में हरियाणा के झज्जर जिले के दो पहलवानों ने परचम लहराया। दोनों ने कुश्ती में जबरदस्त प्रदर्शन कर गोल्ड मेडल पर कब्जा जमाया। पहलवानों के गांवों में ग्रामीण, खेलप्रेमी व उनके कोच लगातार टीवी पर चल रहे खेलों पर नजरें जमाए रहे। जैसे ही बजरंग पूनिया और दीपक पूनिया ने गोल्ड जीते वैसे ही खेलप्रेमियों ने नाच-गाकर खुशी का इजहार किया।
जिला झज्जर के गांव खुड्डन के रहने वाले पहलवान बजरंग पूनिया और बहादुरगढ़ के गांव छारा के निवासी पहलवान दीपक पूनिया ने अपने-अपने वर्ग में गोल्ड मेडल जीते हैं। शुक्रवार को आठवें दिन कॉमनवेल्थ गेम्स में कुश्ती के सेमीफाइनल में बजरंग पूनिया ने इंग्लैंड के जॉर्ज रैम पर 10-0 से जीत के साथ 65 किग्रा फ्री स्टाइल वर्ग के फाइनल में प्रवेश किया।
बजरंग पूनिया का फाइनल मुकाबला 65 किलोग्राम भार वर्ग में कनाडा के लाचलान मैकनील के साथ हुआ। बजरंग ने कनाडा के पहलवान लाचलान को 9-2 से हराया। सेमीफाइनल में बजरंग ने नोरू के लोवे बिंघम पर आसान जीत दर्ज की। वहीं दीपक पूनिया ने कनाडा के एलेक्जेंडर मूर को 3-1 से हराकर फ्रीस्टाइल 86 किग्रा के फाइनल में जगह बनाई। दीपक का फाइनल मुकाबला 86 किलोग्राम भार वर्ग में पाकिस्तान के मुहम्मद इनाम के साथ हुआ। उनकी जीत की खुशी में देर रात को ही लोगों ने एक-दूसरे को मिठाई खिलाई।
वीरेंद्र आर्य हैं दोनों पहलवानों के कोच
कोच आर्य वीरेंद्र दलाल को दोनों पहलवानों पर यकीन था कि उनके शिष्य स्वर्ण पदक लेकर आएंगे। खास बात यह है कि दीपक और बजरंग दोनों ही पहलवान झज्जर के गांव छारा में स्थित लाला दीवानचंद अखाड़े से निकले हैं। यहां अभ्यास में ही दोनों का बचपन बीता है। वीरेंद्र ने कहा कि इस अखाड़े ने देश-प्रदेश को कई नामी पहलवान दिए हैं।
बजरंग और दीपक को तो आज पूरी दुनिया जानती है। दीपक का परिवार गांव में ही रहता है। बजरंग का परिवार फिलहाल सोनीपत में है। छारा में दावं-पेच सीखने के बाद इन दोनों ने दिल्ली का रुख किया। दीपक के पिता सुभाष ने कहा कि बेटे की इस जीत पर उन्हें बेहद खुशी है। जब विदेशी धरती से दीपक भारत लौटेगा तो उसका जोरदार स्वागत किया जाएगा। दीपक पर उन्हें काफी गर्व है। दीपक के पिता सुभाष ने बताया कि वे 2015 से रोज लगभग 60 किलोमीटर की दूरी तय करके उसके लिए झज्जर से दिल्ली दूध और फल लेकर जाते थे। उन्हें बचपन से ही दूध पीना पसंद है।
वर्ष 1995 में शुरू हुआ था अखाड़ा
वर्ष 1995 में कोच आर्य वीरेंद्र दलाल ने यह अखाड़ा शुरू किया था। बाद में उनकी लगन और गांव से खिलाड़ियों की प्रतिभाओं को देखते हुई यह छोटी सी कोशिश सफल होने लगी। 1997 में लाला दीवान चंद कुश्ती एवं योग केंद्र के नाम से संस्था रजिस्टर करवाई गई। उसी की देखरेख में यहां पर अखाड़ा शुरू हुआ।
वर्ष 2003 में भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) ने इस अखाड़े के परिणामों को देखकर इसे गोद ले लिया। 2004 में सबसे पहले भारतीय खेल प्राधिकरण ने आठ से 12 वर्ष के पहलवानों का यहां पर चयन किया और द्रोणाचार्य अवॉर्डी कोच ओमप्रकाश दहिया को यहां पर पहलवानों को गुर सिखाने के लिए तैनात किया।
वर्ष 2004 में ही यहां के पहलवान बजरंग पूनिया को भी भारतीय खेल प्राधिकरण ने गोद लिया था। यहां पर वर्ष 2010 तक अभ्यास किया। जबकि 2005 में दीपक पूनिया ने अखाड़े में प्रवेश पा लिया। वर्ष 2007 में दीपक को साई ने गोद लिया था। एक दशक तक दीपक ने यहां पर अभ्यास किया। यहीं से इन दोनों की कामयाबी की राह बनी।
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बर्मिंघम कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 में हरियाणा के झज्जर जिले के दो पहलवानों ने परचम लहराया। दोनों ने कुश्ती में जबरदस्त प्रदर्शन कर गोल्ड मेडल पर कब्जा जमाया। पहलवानों के गांवों में ग्रामीण, खेलप्रेमी व उनके कोच लगातार टीवी पर चल रहे खेलों पर नजरें जमाए रहे। जैसे ही बजरंग पूनिया और दीपक पूनिया ने गोल्ड जीते वैसे ही खेलप्रेमियों ने नाच-गाकर खुशी का इजहार किया।
जिला झज्जर के गांव खुड्डन के रहने वाले पहलवान बजरंग पूनिया और बहादुरगढ़ के गांव छारा के निवासी पहलवान दीपक पूनिया ने अपने-अपने वर्ग में गोल्ड मेडल जीते हैं। शुक्रवार को आठवें दिन कॉमनवेल्थ गेम्स में कुश्ती के सेमीफाइनल में बजरंग पूनिया ने इंग्लैंड के जॉर्ज रैम पर 10-0 से जीत के साथ 65 किग्रा फ्री स्टाइल वर्ग के फाइनल में प्रवेश किया।
बजरंग पूनिया का फाइनल मुकाबला 65 किलोग्राम भार वर्ग में कनाडा के लाचलान मैकनील के साथ हुआ। बजरंग ने कनाडा के पहलवान लाचलान को 9-2 से हराया। सेमीफाइनल में बजरंग ने नोरू के लोवे बिंघम पर आसान जीत दर्ज की। वहीं दीपक पूनिया ने कनाडा के एलेक्जेंडर मूर को 3-1 से हराकर फ्रीस्टाइल 86 किग्रा के फाइनल में जगह बनाई। दीपक का फाइनल मुकाबला 86 किलोग्राम भार वर्ग में पाकिस्तान के मुहम्मद इनाम के साथ हुआ। उनकी जीत की खुशी में देर रात को ही लोगों ने एक-दूसरे को मिठाई खिलाई।