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DHFL Case: बिना कानूनी अधिकार के किसी को भी कैद नहीं किया जाना चाहिए, जानें सुप्रीम कोर्ट ने और क्या कहा?

बिजनेस डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: कुमार विवेक Updated Sat, 01 Apr 2023 07:17 PM IST
सार

DHFL Case: सीआरपीसी की धारा 167 के अनुसार यदि जांच एजेंसी रिमांड की तारीख से 60 दिनों के भीतर आरोप पत्र दायर करने में विफल रहती है तो आरोपी डिफॉल्ट जमानत का हकदार होगा। कुछ निर्धारित अपराधों की श्रेणी के लिए अवधि को 90 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है।

No one should suffer incarceration without legal authority: SC
सुप्रीम कोर्ट - फोटो : अमर उजाला

विस्तार

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हालांकि राज्य को अपराध रोकने और सुरक्षा बनाए रखने का काम सौंपा गया है, लेकिन व्यक्तिगत स्वतंत्रता बाधित नहीं रखी जानी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि किसी को भी कानूनी अधिकार के बिना कैद का सामना नहीं करना चाहिए।



सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी उस समय की जब वह इस कानूनी सवाल पर विचार कर रहा था कि क्या सीआरपीसी की धारा 167 (2) के प्रोविसो (ए) में परिकल्पित 60/90 दिन की अवधि की गणना करते समय डिफ़ॉल्ट जमानत के दावे पर विचार करने के लिए रिमांड की तारीख को शामिल किया जाना चाहिए या नहीं।


सीआरपीसी की धारा 167 के अनुसार यदि जांच एजेंसी रिमांड की तारीख से 60 दिनों के भीतर आरोप पत्र दायर करने में विफल रहती है तो आरोपी डिफॉल्ट जमानत का हकदार होगा। कुछ निर्धारित अपराधों की श्रेणी के लिए अवधि को 90 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है।

न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पीठ ने रिमांड अवधि की गणना पर ये कहा
न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि निर्धारित 60/90 दिन की रिमांड अवधि की गणना सीआरपीसी की धारा 167 के तहत उस तारीख से की जानी चाहिए जब मजिस्ट्रेट रिमांड को अधिकृत करता है।

पीठ जिसमें न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना भी शामिल हैं ने कहा यह अदालत सचेत है कि किसी को भी कानूनी अधिकार के बिना कैद में नहीं रखा जाना चाहिए। हालांकि, राज्य को अपराध को रोकने और सुरक्षा बनाए रखने का काम सौंपा गया है, लेकिन व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बाधित नहीं किया जाना चाहिए।

शीर्ष अदालत ने कहा कि यदि राज्य निर्धारित 60/90 दिनों की अवधि के भीतर आरोप पत्र या रिमांड के लिए पूरक अनुरोध दायर करने में विफल रहता है, तो उसे व्यक्ति के अधिकारों और उन अधिकारों पर प्रतिबंध के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता है और कानूनी समर्थन के बिना लंबे समय तक कैद के चलन को रोकने की जरूरत है।
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कोर्ट ने कहा- वैधानिक रिमांड अवधि पूरी होने के बाद आरोपी डिफॉल्ट जमानत का अधिकार
अदालत ने कहा, 'अगर वैधानिक रिमांड अवधि समाप्त हो जाती है, तो आरोपी को डिफॉल्ट जमानत का अधिकार मिल जाता है और इसे संरक्षित करने की आवश्यकता होती है। व्यक्ति की स्वतंत्रता निश्चित रूप से सापेक्ष और विनियमित है। पूर्ण स्वतंत्रता एक ऐसी चीज है जिसकी कल्पना सामाजिक सेटिंग में नहीं की जा सकती है।

पीठ ने कहा, "कानून आरोपी व्यक्तियों को हिरासत में लेने और जांच की सुविधा प्रदान करने की अनुमति देता है। हालांकि, लंबे समय तक कैद के चलन को हतोत्साहित करना इस अदालत का कर्तव्य है। इसके अलावा, डिफॉल्ट जमानत का अधिकार बाद में आरोप पत्र दायर करने से समाप्त नहीं होता है, आरोपी को डिफ़ॉल्ट जमानत का अधिकार जारी रहता है।

यस बैंक धनशोधन मामले में डीएचएफएल के पूर्व प्रवर्तकों कपिल वधावन और धीरज वधावन को डिफॉल्ट जमानत देने के बंबई उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट कोर्ट ने यह टिप्पणी की।

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