केंट ने हाल ही में पंखा लॉन्च किया है। इसकी खासियत क्या है और यह किस मायने में दूसरों से अलग है?
यह बड़ी विडंबना है कि हम लोग क्लाइमेट चेंज की बात कर रहे हैं। लेकिन, आप जो बिजली इस्तेमाल करते हैं, वह कार्बन से बनती है। कार्बन जब वातावरण में जाता है तो अलग-अलग लेयर बनाता है और इससे क्लाइमेट में बदलाव आता है। अब बिजली बचाना प्राथमिकता है। इसे दो तरीके से बचा सकते हैं। पहला...अपना लाइफ स्टाइल बदल लें और सोचें कि कम बिजली खपत हो। दूसरा...ऐसे उत्पाद बनाएं, जिससे भरपूर रोशनी मिले, बिजली खपत भी कम हो।
बाजार में जो पंखे मौजूद हैं, उनमें 70-80 वॉट बिजली की खपत होती है। पूरे देश में 120 करोड़ पंखे लगे हैं। हमने जो पंखा पेश किया है, उसमें 28 वॉट की खपत होती है। यानी हमारा हर पंखा 40-50 वॉट बिजली बचाता है। अगर 120 करोड़ पंखे के आधार पर देखेंगे तो हर साल 2 लाख करोड़ रुपये की बिजली बचेगी। यह रकम 500 मेगावॉट के 40 पावर प्लांट में कोयले के इस्तेमाल पर होने वाले खर्च के बराबर है। यही सोचकर हम इस पंखे को लेकर आए हैं।
बिजली खपत तो एक बात है, ग्राहकों के लिए कीमतों के मोर्चे पर यह कितनी मुफीद है?
हमारे पास सभी तरह के पंखे हैं। अभी जो इस्तेमाल हो रहे हैं, वैसे पंखे भी लेकर आए हैं। ऐसे पंखे भी हैं, जो काफी स्टाइलिश हैं। आपके घर की सजावट में भी अहम भूमिका निभा सकते हैं। खास बात इस पंखे में इस्तेमाल होने वाली हमारी तकनीक है, जिसका नाम है ब्रशलेस डायरेक्ट करेंट (बीएलडीसी)। सामान्य पंखे की कीमत करीब 2,000 रुपये है और हम आपको 3,000 रुपये में पंखा दे रहे हैं। यह न सिर्फ बिजली पर खर्च होने वाले आपके वित्तीय बोझ को कम करता है बल्कि नई तकनीक और स्टाइल भी देता है।
तो इस आधुनिक पंखे को भारत में ही बेचेंगे या अन्य देशों में भी निर्यात करेंगे?
हम मेक इन इंडिया फॉर द वर्ल्ड की राह पर आगे बढ़ना चाहते हैं। इसलिए अपने पंखे को अन्य देशों में भी बेचेंगे। हमारे पंखे रिमोट से चलते हैं। इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) इनेबल हैं। इसकी 5 स्टार रेटिंग है। इसलिए भारत में बने पंखे से दुनिया को भी रूबरू कराएंगे।
रिवर्स ऑस्मोसिस (आरओ) तकनीक को भारत लाना केंट का क्रांतिकारी कदम था। इसके पीछे की कहानी क्या है?
मैं बेसिकली पेट्रोलियम इंजीनियर हूं और पेट्रोलियम बचाने के लिए हमने काम शुरू किया था। ऑयल टेस्टिंग उपकरण और ऑयल फ्लोमीटर बनाते थे। फिर नोएडा आकर बच्चे बीमार पड़ गए। पता चला कि खराब पानी की वजह से बीमार हुए हैं। इसलिए हमने इस ओर ज्यादा स्टडी किया। इसके अलावा, उस समय जो प्यूरिफायर मिलते थे, वे पानी की अशुद्धियों को नहीं निकाल पाते थे। सिर्फ उबालने लायक बनाते थे। पानी में जो खारापन होता था, उसे नहीं निकाल पाते थे। वह आरओ से ही निकलता है। फिर 1998 में हमने अपने लिए प्यूरिफायर बनाया। बाद में हमें लगा कि अच्छा है तो इसे दूसरों को भी देना चाहिए। यहां से इसकी शुरुआत हुई।
आईआईटी कानपुर के छात्र को इतना बड़ा ब्रांड बनाने का विचार कैसे आया?
मुझे नहीं पता। बस हो गया। मन में यह जरूर था आईआईटी से पढ़े हैं। 10 साल इंडियन ऑयल में नौकरी की है तो अपने और देश के लिए कुछ-न-कुछ करना है। अपने लिए कम और देश के लिए ज्यादा। पहले हम लोग ऑयल कंजर्वेशन में आए। फिर गुड क्वालिटी ऑफ वाटर में आए। अभी हमने पंखा लॉन्च किया है। बिजली कैसे बचाई जाए, अब यही हमारा फोकस है।
महंगा होने के बावजूद आरओ वाटर प्यूरिफायर सेगमेंट में आपका बाजार हिस्सा 40% है। अन्य कंपनियों से प्रतिस्पर्धा के लिए क्या खास रणनीति अपनाते हैं?
आदमी वाटर प्यूरिफायर दिखावे के लिए नहीं खरीदता है। वह इसलिए खरीदता है कि उसे बीमारी से बचना है। इसके लिए वह कीमत नहीं बल्कि गुणवत्ता देखता है। लोकल आरओ दिखने में तो वैसे ही दिखेगा, लेकिन उसमें ऐसी तकनीक नहीं है कि वह पूरी तरह शुद्ध पानी दे सके। वह भी मिनरल के साथ। देखिए, हम अपने वाटर प्यूरिफायर को लेकर दुनिया के बेस्ट लेबोरेटरीज में गए। उन्होंने बताया कि यह बिल्कुल शुद्ध पानी देता है। अब तो हमलोग वैसे वाटर प्यूरिफायर भी लाए हैं, जिसमें पानी की बर्बादी नहीं होती है। इसके अलावा, शुद्धता का मीटर भी लगाते हैं, जो आपको बताता है कि पानी कितना शुद्ध है। इसलिए हमारा उत्पाद पसंद आ रहा है।
आज भी आरओ वाटर प्यूरिफायर की पहुंच 6-7 फीसदी है। सबसे बड़ी तकलीफ है कि लोग शुद्ध पानी को लेकर जागरूक नहीं है। ग्रामीण इलाकों में हालत और भी खराब है।
ग्रामीण इलाकों में भी पानी से लेकर हवा तक प्रदूषित हो रही है। केंट की ग्रामीण इलाकों में पहुंच कैसी है?
25 साल तक बाजार में टिकना आसान नहीं है। ब्रांडिंग के जरिये हमने भी लोगों तक पहुंच बनाई। उन्हें शुद्ध पानी के प्रति जागरूक किया है। अब हम ग्रामीण इलाकों में भी जाना चाहते हैं। उनके लिए हमने ऐसा वाटर प्यूरिफायर बनाया है, जो बिना बिजली चलता है। सिर्फ ऊपर से पानी डालिए और वह शुद्ध होकर आता है। उबले पानी से अच्छा होता है। इसका नाम केंट गोल्ड है, जो ग्रैविटी से चलता है। सस्ता है। 1,500 रुपये में खरीद सकते हैं। लेकिन, ग्रामीण लोगों के लिए 1,500 रुपये भी ज्यादा है क्योंकि वे ज्यादा जागरूक नहीं है।