साल 2014 में केंद्र की सत्ता संभालने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक उदार, वैश्विक आर्थिक नीति को आगे बढ़ाने के लिए अमेरिका में उल्लेखनीय रूप से काम कर चुके तीन भारतीय शिक्षाविदों पर भरोसा जताया था।
लेकिन अब जब आम चुनाव सिर पर है और मुकाबला तगड़ा दिख रहा है, ऐसे में तीसरी शख्सियत भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन ने भी सरकार का साथ छोड़ दिया है। पहले रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन और थिंक टैंक नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया जा चुके हैं।
इन अर्थशास्त्रियों को सौंपा गया काम
कम से कम दर्जन भर सरकारी अधिकारियों, नीतिगत सलाहकारों व सत्तारूढ़ भाजपा के सदस्यों ने बताया कि नीति निर्माण का अधिकतर कार्य मोदी के कार्यालय व दक्षिणपंथी व राष्ट्रवादी अर्थशास्त्रियों के एक समूह को सौंपा जा चुका है।
अधिकारियों व शिक्षाविदों का कहना है कि तीनों अर्थशास्त्रियों का जाना घरेलू उद्योगों व किसानों के हित में मुक्त व्यापार व खुले बाजार के दृष्टिकोण को सरकार द्वारा नकारे जाने को रेखांकित करता है।
आरबीआई के गवर्नर रघुराम राजन 2016 में अपना कॉन्ट्रैक्ट खत्म होने के बाद वापस अमेरिका लौट गए। वहीं, सरकार के थिंक टैंक नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने 2017 में अपने पद से इस्तीफा दे दिया। पिछले महीने भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन ने अपना पद छोड़ने की घोषणा की।
भाजपा के वैचारिक संरक्षक आरएसएस से जुड़े एक राष्ट्रवादी समूह स्वदेशी जागरण मंच के प्रमुख अश्विनी महाजन ने कहा कि हमें उम्मीद है कि अरविंद सुब्रमण्यन के जाने से मोदी सरकार घरेलू विशेषज्ञों की बात सुनेगी।
कौन लेंगे सुब्रमण्यन की जगह
इसकी अभी तक घोषणा नहीं की गई है, लेकिन हाल के महीनों में आरएसएस से जुड़े दक्षिणपंथी सलाहकारों की सरकार में पूछ बढ़ गई है और वे आयात पर कर लगाने, बीमार कंपनियों व बैंकों का निजीकरण रोकने के अपने एजेंडे पर जोर दे रहे हैं।
कई अन्य पश्चिमी अर्थशास्त्रियों की तरह राजन व सुब्रमण्यन ने सरकारी बैंकों का निजीकरण, राज्यों को सब्सिडी में कटौती, खुदरा क्षेत्र में प्रवेश करने वाले विदेशी निवेशकों के लिए नियम सरल करने की वकालत की थी। लेकिन इनके अधिकांश सुझावों पर अमल नहीं किया गया। वहीं पनगढ़िया ने भारत में अनुवांशिक रूप से संशोधित (जीएम) फसलों को मंजूरी देने का पक्ष लिया, जिसका भाजपा के कई सांसदों ने विरोध किया था।
साल 2014 में केंद्र की सत्ता संभालने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक उदार, वैश्विक आर्थिक नीति को आगे बढ़ाने के लिए अमेरिका में उल्लेखनीय रूप से काम कर चुके तीन भारतीय शिक्षाविदों पर भरोसा जताया था।
लेकिन अब जब आम चुनाव सिर पर है और मुकाबला तगड़ा दिख रहा है, ऐसे में तीसरी शख्सियत भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन ने भी सरकार का साथ छोड़ दिया है। पहले रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन और थिंक टैंक नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया जा चुके हैं।
इन अर्थशास्त्रियों को सौंपा गया काम
कम से कम दर्जन भर सरकारी अधिकारियों, नीतिगत सलाहकारों व सत्तारूढ़ भाजपा के सदस्यों ने बताया कि नीति निर्माण का अधिकतर कार्य मोदी के कार्यालय व दक्षिणपंथी व राष्ट्रवादी अर्थशास्त्रियों के एक समूह को सौंपा जा चुका है।
अधिकारियों व शिक्षाविदों का कहना है कि तीनों अर्थशास्त्रियों का जाना घरेलू उद्योगों व किसानों के हित में मुक्त व्यापार व खुले बाजार के दृष्टिकोण को सरकार द्वारा नकारे जाने को रेखांकित करता है।