भारत में ऐसे कई वीर और महान शासक पैदा हुए हैं, जिनकी शौर्यगाथाएं जितनी बताई जाएं, कम ही पड़ती हैं। एक ऐसे महान शासक और योद्धा थे राणा कुंभा, जिन्हें महाराणा कुंभकर्ण या कुंभकर्ण सिंह के नाम से भी जाना जाता है। वर्ष 1433 से 1468 तक वह मेवाड़ के राजा थे। युद्ध के अलावा राणा कुंभा को अनेक दुर्ग और मंदिरों के निर्माण के लिए भी इतिहास में याद किया जाता है। उनका स्थापत्य युग स्वर्णकाल के नाम से जाना जाता है। चित्तौड़ में स्थित विश्वविख्यात 'कीर्ति स्तंभ' की स्थापना राणा कुंभा ने करवाई थी।
आपको जानकर हैरानी होगी कि मेवाड़ में निर्मित 84 किलों में से 32 किले तो राणा कुंभा ने ही बनवाए थे। महज 35 वर्ष की अल्पायु में उनके द्वारा बनवाए गए 32 दुर्गों में चित्तौड़गढ़, कुंभलगढ़, अचलगढ़, मचान दुर्ग, भौसठ दुर्ग और बसंतगढ़ महत्वपूर्ण और भव्य हैं। चित्तौड़ दुर्ग का आधुनिक निर्माता भी उन्हें ही कहा जाता है, क्योंकि दुर्ग के अधिकांश वर्तमान भाग का निर्माण उन्होंने ही करवाया था।
दुनिया की दूसरी सबसे लंबी दीवार जिस किले के बाहर मौजूद है, उसका निर्माण भी राणा कुंभा ने ही करवाया था। इसे कुंभलगढ़ के किले के नाम से जाना जाता है और दीवार को 'कुंभलगढ़ की दीवार'। कहते हैं कि इस किले के निर्माण में 15 साल का लंबा वक्त लगा था। आप ये जानकर हैरान हो जाएंगे कि इस किले के अंदर 360 से ज्यादा मंदिर हैं, जिनमें से 300 प्राचीन जैन मंदिर और बाकी हिंदू मंदिर हैं।
राणा कुंभा कितने ताकतवर शासक थे, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि वो आमेर और हाड़ौती जैसे ताकतवर राजघरानों से भी टैक्स वसूला करते थे। हालांकि राणा कुंभा एक उदारवादी शासक भी थे। कहा जाता है कि वह अपने राज में जहां कहीं भी लोगों को प्यास से परेशान देखते थे, वहां पर तालाब खुदवा देते थे। उन्होंने अपने शासनकाल में बड़ी संख्या में तालाबों का निर्माण करवाया था।
राणा कुंभा का इतिहास केवल युद्धों में विजय तक ही सीमित नहीं थी बल्कि उनकी रचनात्मकता भी आश्चर्यजनक थी। 'संगीत राज' उनकी महान रचना है, जिसे साहित्य का 'कीर्ति स्तंभ' माना जाता है। कुछ इतिहासकारों के मुताबिक, राणा कुंभा ने कामसूत्र जैसा ही एक ग्रंथ भी लिखा था। साथ ही खजुराहो में जिस तरह की मूर्तियां हैं, उसी तरह की मूर्तियां उन्होंने अपने राज में भी बनवाया था।