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Ranji Trophy: Where Bihar won the final for the first time in a century, there were fewer audience why
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Ranji Trophy : बिहार ने सदी में पहली बार जहां फाइनल जीता, वहां ग्राउंड प्लेयर से भी कम लोग दर्शक दीर्घा में
कृष्ण बल्लभ नारायण, पटना
Published by: कुमार जितेंद्र ज्योति
Updated Sun, 29 Jan 2023 07:12 PM IST
सार
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Bihar Ranji Match : पटना के जिस मोइनुल हक स्टेडियम में बिहार ने रणजी ट्रॉफी के प्लेट ग्रुप का फाइनल मुकाबला 220 रनों के विशाल स्काेर से जीता, वहां ग्राउंड पर कुल 15 लोग ग्राउंड पर थे, जबकि दर्शक दीर्घा में कभी भी इतनी संख्या में लोग नहीं दिखे।
मोइनुल हक स्टेडियम के दर्शक दीर्घा में इतने ही लोग दिख रहे थे।
- फोटो : अमर उजाला
गजब है बिहार! हां, सचमुच। यकीन के लिए यह खबर पढ़िए। जिस मोइनुल हक स्टेडियम में बिहार ने रणजी ट्रॉफी के प्लेट ग्रुप का फाइनल मुकाबला 220 रनों के विशाल स्काेर से जीता, वहां ग्राउंड पर हमेशा दो अंपायर और दो बल्लेबाजों के साथ सामने वाली टीम के 11 प्लेयर मिलाकर कुल 15 लोग ग्राउंड पर थे, वहां दर्शक दीर्घा में कभी भी इतनी संख्या में लोग नहीं दिखे। यह उस स्टेडियम का हाल रहा, जहां एक बिहारी ने पहली पारी में डबल सेंचुरी से धमाका कर दिया था और जहां एक बिहारी ने एक मैच में 10 विकेट चटकाए। यह तस्वीर उस बिहार की भी दिखी, जिसे झारखंड बंटवारे के बाद 18 साल की जद्दोजहद के बाद रणजी खेलने का मौका मिला।
टॉस जीत धमाकेदार आगाज किया था बिहार ने
पहली बार अप्रैल 2018 में रणजी खेलने के लिए जब द बोर्ड ऑफ कंट्रोल फॉर क्रिकेट इन इंडिया (BCCI) ने बिहार को अनुमति दी तो ऐसे लगा था, मानो क्रिकेट अब एक बार फिर जिंदा हो जाएगा। बिहार के परफॉर्मेंस में उतार-चढ़ाव के साथ कई तरह के टीम चयन में भ्रष्टाचार, खिलाड़ियों के लिए ट्रेनिंग-प्रैक्टिस की अव्यवस्था जैसी बातें आईं, लेकिन इस बार जब बिहार की टीम रणजी ट्रॉफी के अपने ग्रुप में फाइनल में पहुंची तो उम्मीद थी कि दर्शकों का साथ मिलेगा। मैच में बिहार की धमाकेदार शुरुआत और लगातार बढ़त के स्कोर कार्ड से यह उम्मीद बढ़ी ही थी, लेकिन छुट्टी के दिन रविवार को जब मोइनुल हक स्टेडियम में 'अमर उजाला’ की टीम पहुंची तो हकीकत बहुत बुरे रूप में सामने आई। सुबह 10 बजे के करीब जब यह माना जा रहा था कि मैच दो-ढाई घंटे में बिहार जीत लेगा, तब दर्शक दीर्घा में पुलिसकर्मियों को मिलाकर आठ लोग थे। किसी भी संख्या 12 से ज्यादा नहीं गई। इनमें से कुछ लोग बिहार क्रिकेट एसोसिएशन (BCA) की ओर से थे, कुछ बीसीसीआई से और बाकी क्रिकेटर या उनके परिवार के थे।
चुनिंदा दर्शकों में क्रिकेटर सुमित पटेल भी थे, जिन्होंने प्रचार की कमी का मुद्दा उठाया।
- फोटो : अमर उजाला
बीसीए की राजनीति, आरोप और सरकार जिम्मेदार
मैच देखने आए क्रिकेटर सुमित पटेल ने बिहार टीम के कई खिलाड़ियों का नाम लेकर कहा कि हम सब साथ खेल चुके हैं, लेकिन जब खाली दर्शक दीर्घा पर बात की गई तो उन्होंने कहा- “पटना को मैच कम मिलते हैं, उसपर मोइनुल हक स्टेडियम की हालत खराब है। यह तो कारण है ही। ऊर्जा स्टेडियम में मैच हो रहा या यहां, इस बारे में भी प्रचार नहीं होने के कारण लोग दुविधा में रहते हैं।” मैच देख रहीं अर्चना ने कहा कि "दूसरे राज्यों में इस बात का प्रचार होता है कि मैच कहां है, लेकिन यहां तो स्टेडियम के बाहर आकर भी नहीं पता चलता है। आप खुद जानते हैं तो आ जाते हैं। पहुंचने के बाद स्टेडियम की हालत देखकर भी लोग उदासीन होते हैं।" दर्शक राजेश कुमार ने कहा- “स्टेडियम की हालत के साथ प्रचार की भी कमी वजह है। BCA की राजनीति, पैसे लेकर सेलेक्शन के आरोपों के कारण उदासीनता और इन सभी के साथ बिहार सरकार का खेल व स्टेडियम के प्रति रवैया दोषी है।” असिस्टेंट कोच संजय की पत्नी कुमारी जूली ने कहा कि "दूरी के कारण ज्यादा लोग नहीं आते हैं, लेकिन अगर मेरी रुचि है तो मुझे आना ही चाहिए।" दर्शक विभाष ने कहा कि "यह मिस-मैनेजमेंट का उदाहरण है। इतने लंबे समय बाद यह उपलब्धि हासिल हुई है, लेकिन यहां आकर ऐसा फील नहीं हो रहा है। खेल को लेकर जागरुकता नहीं फैलाए जाने के कारण यह हाल है। एक समय जिले से बाहर आकर लोग बैठते थे, लेकिन आज क्या इस उजड़े चमन में बैठेंगे?"
जिम्मेदार अधिकारी सुनील कुमार सिंह ने रणजी के प्रति उदासीनता की बात की।
- फोटो : अमर उजाला
रणजी मैचों के प्रति क्रिकेटर भी उदासीन रहते हैं
‘अमर उजाला’ ने दर्शकों की संख्या नहीं रहने पर जब क्रिकेट ऑपरेशन के GM सुनील कुमार सिंह से बात की गई तो उनका जवाब अपने आप में अनोखा था। उन्होंने कहा कि "रणजी में एक समय टिकट लगता था, लेकिन दर्शकों की कमी के कारण ही फ्री इंट्री कर दी गई। दर्शक रणजी मैचों के प्रति उत्साहित नहीं रहते। उन्होंने 500-1000 दर्शकों की बात की, लेकिन जब 10-12 दर्शक दिखाते हुए सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि दर्शक फ्लोटिंग हैं। आते-जाते रहते हैं। प्रचार की कमी तो नहीं है। खेल प्रशंसकों को तो पता रहता है। पटना में दो हजार क्रिकेटर रजिस्टर्ड हैं और अगर वह भी नहीं आ रहे तो यह रणजी के प्रति उदासीनता है।"
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