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'Khakee: The Bihar Chapter' connected with Bihari politics, story of Rajasthani Lodha uprooted the dead
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'खाकी: द बिहार चैप्टर' का बिहारी राजनीति से है गहरा कनेक्शन, राजस्थानी लोढ़ा की कहानी से गड़े मुर्दे उखड़े
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, पटना
Published by: कुमार जितेंद्र ज्योति
Updated Fri, 09 Dec 2022 07:04 PM IST
सार
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'खाकी: द बिहार चैप्टर' और आईपीएस अमित लोढ़ा की चर्चा के कारण बिहार के राजनीतिक हलके में सनसनी है। वजह है राजनीति के गड़े मुर्दों का उखड़ना। राजस्थान निवासी आईपीएस ने बिहार की जो कहानी लिखी है, उसका बैकग्राउंड बता देगा कि सनसनी क्यों है?
सीनियर आईपीएस अधिकारी अमित लोढ़ा की चर्चा गरम है। राजस्थान के मूल निवासी हैं और बिहार के अपराध की कहानी लिखने के कारण खबरों में हैं। इनकी लिखी 'बिहार डायरीज़' पर सिरीज़ 'खाकी: द बिहार चैप्टर' 25 नवंबर से नेटफ्लिक्स पर आने के बाद से चर्चा में है, लेकिन 7 दिसंबर को जैसे ही अमित लोढ़ा पर बिहार की विशेष निगरानी इकाई ने केस दर्ज किया तो चर्चा गरम हो गई। बढ़ती ठंड के बीच इस गरम चर्चा के कारण बिहार के राजनीतिक हलके में भी सनसनी है। वजह है राजनीति के गड़े मुर्दों का उखड़ना। राजस्थान निवासी आईपीएस ने बिहार की जो कहानी लिखी है, उसका बैकग्राउंड बता देगा कि सनसनी क्यों है? चलिए, जानते हैं कहानी...
'खाकी: द बिहार चैप्टर' की कहानी उस समय की है, जब राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद और उनकी पत्नी राबड़ी देवी के पास बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी रही। कहानी के ज्यादातर कैरेक्टर राजनीति से जुड़े हैं। कुछ ऐसे भी कैरेक्टर हैं, जो इस कहानी में नहीं होने के बाद भी अमित लोढ़ा पर कार्रवाई के साथ चर्चा में आ गए हैं। इस कहानी का सबसे पहला राजनीतिक कनेक्शन है कि इसमें लालू-राबड़ी शासनकाल के अपराध और बिहार की छवि दिख रही है। राजद सरकार में है, इसलिए भी इस समय उस दौर की कहानी सामने आने से चर्चा गरम है। इसके बाद दूसरा राजनीतिक कनेक्शन यह कि इस कहानी के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष किरदार इस समय सत्ता से कहीं न कहीं जुड़े हैं।
जिस अपराधी से अमित लोढ़ा को लोहा लेते दिखाया गया है, वह इस समय सत्ताधारी दल का कार्यकर्ता है। उसकी पत्नी उसी क्षेत्र से निर्दलीय विधानसभा चुनाव दो बार लड़ चुकी है, जिस शेखपुरा की कहानी है। वह किरदार खुद अभी शेखपुरा-आसपास में जमीन खरीद-बिक्री का धंधा करता है। वह निगेटिव किरदार जिस बहुचर्चित राजो सिंह हत्याकांड के आरोप से मुक्त हुआ है, उससे जुड़े लोग भी बिहार की राजनीति में अभी सशक्त हस्ताक्षर हैं। जिस दल के राजनेता की हत्या हुई थी, वह तब भी सत्ता में थी और अब भी है। जिस राजनेता की हत्या से इस सिरीज़ के निगेटिव लीड की सबसे ज्यादा चर्चा हुई, उनके रिश्तेदार भी बिहार में अब सत्ताधारी दल से जन-प्रतिनिधि हैं। हत्या का प्राथमिक आरोप जिस राजनेता पर लगा था, वह भी सत्ताधारी दल के प्रमुख नेताओं में हैं। वह आरोप खारिज हो गया था और आरोप लगाने वाले राजनेता के परिवार ने भी उस घटना का मैल मन से हटा दिया, लेकिन चर्चा तो एक बार फिर निकल पड़ी है। चर्चा शेखपुरा से बेगूसराय तक ज्यादा है, लेकिन पटना अछूता नहीं है। क्योंकि, 9 सितंबर 2005 को राजो सिंह की हत्या शेखपुरा में कांग्रेस दफ्तर में हुई थी। वह शेखपुरा और बरबीघा के एक समय लंबे समय तक विधायक और फिर दो बार बेगूसराय के सांसद भी बने। शेखपुरा को जिला बनाने में योगदान के लिए राजो सिंह का नाम आज भी उतना ही चर्चित है।
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