याद आती है तेरी,
जब आसमान से रात की काली चुनरी सरकती है
और शम्स का उजाला चढ़ने लगता है।
मेरी आँख खुलती है
और इस बात का एहसास होता है की
अब तक जो तू मेरे साथ थी
वो दरअसल एक ख़्वाब था,
हक़ीक़त में तो मुलाकात फिर मुमकिन नहीं है
क्योंकि तू मेरे करीब नहीं है।
याद आती है तेरी,
जब ताज़ी-ताज़ी सुबह की
मीठी गुलाबी ठंड सूरज की पहली किरण पड़ते ही
पिघलने लगती है
और मेज़ पर चाय की सिर्फ एक प्याली नज़र आती है।
तब वो प्याली एहसास दिलाती है,
दरअसल तेरे साथ चाय की चुस्की लेते हुए
सुस्ती मिटाना आज फिर मुमकिन नहीं है
क्योंकि तू मेरे करीब नहीं है।
याद आती है तेरी,
जब मै यूंही टहलने निकल पड़ता हूँ,
कुछ देर ख़ामोश रहकर
अपने जज़्बात किसी से बयां करने की उम्मीद में
बगल में देखता हूँ,
मुझे सिर्फ मेरी परछाई ही नज़र आती है,
जो रोशनी में तो साथ होती है
पर अंधेरा होते ही साथ छोड़ जाती है।
तब इस अंधेरे में तन्हाई
इस बात का एहसास दिलाती है
की वो अल्फाज़ जो बुने ख़ामोशी की उस लम्हे में,
आवाज़ देना उन्हें मुनासिब नहीं है,
सुनने के लिए उन्हें
क्योंकि तू मेरे करीब नहीं है।
याद आती है तेरी,
जब कदम पीछे हटने लगते है,
उस रास्ते पर से
जिस पर बड़ी उम्मीद से चलना शुरू किया था।
मंजिल कब हासिल होगी इस बात का तकाज़ा तो न था
पर सफर अच्छा कटेगा तेरे साथ
दिल को इस ही बात का ऐतमाद दिया था।
मन करता है की देख लूँ पीछे मुड़कर
कितनी दूर निकल आया हूँ।
पर इस बात का एहसास डरा देता है
की रास्ते पर सिर्फ मेरे पैरों के निशां नज़र आयेंगे
और तेरी मौजूदगी का कोई निशां ना होगा।
मंजिल तो हासिल हो ही जाएगी किसी तरह
पर सफ़र ख़ूबसूरत होने की उम्मीद सही नही है
क्योंकि तू मेरे करीब नहीं है।
Abhinav
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3 months ago