रामपुर। कोर्ट ने अजीमनगर पुलिस की मुठभेड़ पर सवालिया निशान लगाते हुए गिरफ्तार किए गए सभी आरोपियों को बरी कर दिया है। साथ ही कोर्ट ने पुलिस को नसीहत दी है कि बेगुनाहों को झूठे मामलों में न फंसाया जाए। कोर्ट के इस फैसले से पुलिस को तगड़ा झटका लगा है।
वाहवाही लूटने और आरोपियों पर शिकंजा कसने के लिए अधिकांशत: पुलिस बदमाशों को मुठभेड़ के बाद गिरफ्तार करना दर्शाती है। पुलिस की इस बढ़ती कार्यप्रणाली को कोर्ट ने शुक्रवार को झटका दिया है। मामला अजीमनगर थाना क्षेत्र से जुड़ा हुआ है। अजीमनगर पुलिस ने 18 नवंबर 08 को जिठनिया अड्डे से चार लोगों को मुठभेड़ के बाद गिरफ्तार करना दिखाया था। इनके कब्जे से पुलिस ने तमंचा, चाकू, कारतूस और मोबाइल बरामद किया था। पुलिस का आरोप था कि पकड़े गए सभी लोग शातिर किस्म के हैं और ये लोग लूट की योजना बना रहे थे। पुलिस के ललकारने पर आरोपी लोगों ने फायरिंग भी की। मगर, इस फायरिंग में कोई पुलिस कर्मी जख्मी नहीं हुआ। पुलिस की यह कहानी कोर्ट में आकर सही साबित नहीं हो पाई। पुलिस के तीन कर्मचारी गवाह के रूप में पेश किए गए। मगर, इन तीनों के बयानों में विरोधाभास रहा। अभियोजन पक्ष पुलिस की ओर से बताई गई कहानी को सिद्ध नहीं कर पाया, लिहाजा कोर्ट ने इस पर सख्त रवैया अपनाया। अपर जिला जज एक्स कैडर नरेंद्र सिंह ने साक्ष्य के अभाव में गिरफ्तार किए गए अजीमनगर थाना क्षेत्र के नगलिया आकिल गांव इरफान उर्फ जिगर, सलीम, मिक्की, माजिद को बरी कर दिया।
तथ्य एव परिस्थितियों को देखते हुए पुलिस ने संपूर्ण मामले को झूठा तैयार कि या है। अभियोजन अपने साक्ष्य से युक्तियुक्त संदेह से परे साबित कर पाने में असफल रहा है। पुलिस बेगुनाह लोगों को झूठे मामले में न फंसाए।
नरेंद्र सिंह, न्यायाधीश