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बदायूं। सूचना विभाग के लिपिक की हत्या की गई या फिर उन्होंने आत्महत्या की, इसका भेद खोजना अब पुलिस की जिम्मेदारी बन गई है। पोस्टमार्टम में खास इशारा न मिलने की वजह से सच्चाई पता करने का दारोमदार पुलिस पर ही है। मौके से मिलीं लिपिक की डायरी और मोबाइल भी खुलासे में मददगार साबित हो सकते हैं।
उमाशंकर भारद्वाज मूल रूप से अलीगढ़ जिले के थाना खैर के गांव कसीसो के निवासी थे। कुछ वर्षों से वह यहां सूचना विभाग में कनिष्ठ लिपिक के तौर पर कार्यरत थे। उमाशंकर काफी सीधे और संकोची स्वभाव के थे। कुछ दिनों से वह काफी परेशान लग रहे थे। कार्यालय में आने-जाने वाले लोगों से वह निराशा भरी बातें करते थे। दफ्तर में काम की अधिकता और उपेक्षा का जिक्र भी उनकी जुबान पर रहता था। फिर भी किसी को इतना आभास नहीं हुआ कि उमाशंकर कुछ दिन बाद उनके बीच नहीं रहेंगे। इस मामले में हत्या या आत्महत्या की स्थिति पोस्टमार्टम में भी पुष्ट नहीं हो सकी। कुछ लोग मान रहे हैं कि उमाशंकर ने किसी टेंशन की वजह से आत्महत्या कर ली होगी।
हालांकि कड़वा सच यह भी है कि अगर उन्हें कुछ खाकर जान देनी थी तो जगह घर, दफ्तर या आसपास की कोई जगह हो सकती थी। इतनी दूर गन्ने के खेत में जाकर मौत को गले लगाना किसी के गले नहीं उतर रहा। ऐसे में बहुत संभव है कि उमाशंकर किसी साजिश के शिकार हुए हों। शव के पास उनका मोबाइल, दो डायरी, पेन, रूमाल तथा दस रुपये मिले। इन्हें फिलहाल परिवार के ही एक सदस्य ने रख लिया। मौके पर पहुंचे दरोगा महेश गौतम को यह सामान बरामद होने की जानकारी तो मिली पर सामान नहीं मिला। अब पुलिस मोबाइल कॉल डिटेल तथा डायरी आदि की बरामदगी से इस केस की सच्चाई खोज सकती है।