बदायूं। डायरिया से होने वाली मौत स्वास्थ्य महकमा नहीं रोक पा रहा है। जबकि लगातार टीकाकरण अभियान के नाम पर करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाए जा रहे हैं। पिछले दो साल में डायरिया से सात मौतें हो चुकी हैं। इसके अलावा खसरा, चिकनपॉक्स के भी तमाम केस सामने आ चुके हैं। हाल ही में एक स्कूल के बच्चे की खसरा से मौत हुई, लेकिन महकमे के आंकड़ों में यह भी दर्ज नहीं है। कागजों में जिले भर में सीएचसी-पीएचसी पर तैनात चिकित्सकों और संक्रामक सेल ने इस अवधि में 242 मरीजों का इलाज किया है।
स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों पर गौर करें तो वर्ष 2010 में डायरिया के 54 मरीजों का इलाज संक्रामक सेल ने किया। इसमें चार की मौत हो गई। खसरा के 63 और चिकनपॉक्स के 150 केस प्रकाश में आए। टीम का दावा है कि इन दोनों रोगों से किसी मरीज की मौत नहीं हुई है, लेकिन सूत्र बताते हैं कि ग्रामीण इलाकों में इन रोगों से मौत होने का शोर मचा था। वर्ष 2011 में डायरिया के 54 केस सामने आए। इसमें तीन लोगों की मौत हो गई। मृतक गिनौरा गांव के निवासी थे। चिकनपॉक्स के 21 मामले प्रकाश में आए।
इसी तरह वर्ष 2012 में खसरा के पांच केस सामने आए हैं। विभाग एक भी मौत स्वीकार नहीं कर रहा। जबकि एक शिशु मंदिर के बच्चे की मौत हाल में ही हुई है। उसका रिकार्ड विभाग के पास नहीं है। बताते हैं कि महकमे के आंकड़ों में मौतों की संख्या अधिक हो गई तो अधिकारियों की गर्दनें फंसती नजर आएंगी।
संक्रामक रोग चिकित्साधिकारी डॉ. धर्मवीर प्रताप का कहना है कि संक्रामक रोग से पीड़ित लोगों का इलाज ग्रामीण इलाकों के सरकारी अस्पतालों में किया जाता है। जब कंट्रोल से बाहर मरीज होते हैं तो उनका उपचार संक्रामक सेल करती है। चालू वर्ष में संक्रामक रोगों से किसी भी व्यक्ति की मौत नहीं हुई है।